2013 Top Ten of Polemic for Philosophy
- अक्रियावाद
- अक्रियावाद बुद्ध के समय का एक प्रख्यात दार्शनिक मतवाद। महावीर तथा बुद्ध से पूर्व के युग में भी इस मत का बड़ा बोलबाला था। इसके अनुसार न तो कोई कर्म है, न कोई क्रिया और न कोई प्रयत्न। इसका खंडन जैन तथा
- सत्कार्यवाद
- सत्कार्यवाद, सांख्यदर्शन का मुख्य आधार है। इस सिद्धान्त के अनुसार, बिना कारण के कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती। फलतः, इस जगत की उत्पत्ति शून्य से नहीं किसी मूल सत्ता से है। यह सिद्धान्त बौद्धों
- असत्कार्यवाद
- असत्कार्यवाद, कारणवाद का न्यायदर्शनसम्मत सिद्धांत जिसके अनुसार कार्य उत्पत्ति के पहले नहीं रहता। न्याय के अनुसार उपादान और निमित्त कारण अलग-अलग कार्य उत्पन्न करने की पूर्ण शक्ति नहीं है किंतु
- परब्रह्म
- "परब्रह्म" का शाब्दिक अर्थ है 'सर्वोच्च ब्रह्म' - वह ब्रह्म जो सभी वर्णनों और संकल्पनाओं से भी परे है। अद्वैत वेदान्त का निर्गुण ब्रह्म भी परब्रह्म है। वैष्णव, शाक्त और शैव सम्प्रदायों में भी क्रमशः
- तत्त्वमीमांसा
- तत्त्व मीमांसा या पराभौतिकी(अंग्रेज़ी-metaphysics) दर्शनशास्त्र की वह शाखा है,जो वास्तविकता के सिद्धांत एवं यथार्थ व स्वत्व/सत्ता की मूलभुत-मौलिक प्रकृति, अस्तित्व, अस्मिता, परिवर्तन, दिक् और समय
- स्वतन्त्रता
- स्वतंत्रता आधुनिक काल का प्रमुख राजनैतिक दर्शन है। यह उस दशा का बोध कराती है जिसमें कोई राष्ट्र, देश या राज्य द्वारा अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने पर किसी दूसरे व्यक्ति/ समाज/ देश का किसी प्रकार
- सुकरात
- सुकरात ( युनानी- Σωκράτης ; 470-399 ईसा पूर्व ) एथेंस के एक प्राचीन यूनानी दार्शनिक थे , जिन्हें पाश्चात्य दर्शन के संस्थापक और पहले नैतिक दार्शनिकों में से एक के रूप में श्रेय दिया जाता है । सुकरात
- कर्म
- साधारण बोलचाल की भाषा में कर्म का अर्थ होता है 'क्रिया'। व्याकरण में क्रिया से निष्पाद्यमान फल के आश्रय को कर्म कहते हैं। "राम घर जाता है' इस उदाहरण में "घर" गमन क्रिया के फल का आश्रय होने के नाते
- शांतिनाथ
- शांतिनाथ जैन घर्म में माने गए २४ तीर्थकरों में से अवसर्पिणी काल के सोलहवे तीर्थंकर थे। माना जाता हैं कि शांतिनाथ के संग ९०० साधू मोक्ष गए थे
- नेमिनाथ
- अरिष्टनेमि या